Saturday, 29 March 2014

प्रकृति से सीखें


फूलों से हम हसना सीखें,
भौरों से हम गाना। 
सूरज कि किरणों  से सीखें,
जगना  और जगाना। 
सागर कि लहरो से सीखें,
गिर कर फिर उठ  जाना।
 सावन कि बहार से सीखें ,
हर मौसम में जीना। 
कोयल कि बोली से सीखें,
सबके मन को लुभाना।
बाचों की किलकारी से सीखें,
निश्छल मन का पाना।
हिमालय कि छोटी से सीखें,
प्रहरी बन कर खड़े रहना।
मिटटी के नन्हे दिए से सीखें,
जल कर भी जग रोशन कर जाना।


Published in Rupayan Date : 6 Sept 2013