लक्षी दुर्गा काली सरस्वती और सीता को पूजने वाले इस देश में निरंतर बढ़ रही कन्या भ्रूण हत्या के चलते आज ममता और शक्ति का प्रतीक माने जाने वाली स्त्रियों का अस्तित्व ही गहरे संकट में हैं । लड़को की अपेक्षा लड़कियों की संख्या तेज़ी से गिरती जा रही है। पिछले एक दशक में १५ लाख कन्या भ्रूणों की हत्या हुई हैं ।
आइये आपको एक घटना से अवगत करा दे। रमेश और रचना (परिवर्तित नाम) की शादी को ४ वर्ष हो चुके है। दोनों पढ़े लिखे ऊँचे पदों पर कार्यरत हैं. उनकी पहली संतान एक कन्या हैं। मगर बेटे की चाह में रचाना ३ बार गर्भपात करवा चुकी है। क्युकि तीन बार गर्भ में कन्या भ्रूण था। आश्चर्य की बात ये है की दोनों को अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है।
इतने कानून बने है। सजा का प्रावधान भी हैं. फिर कैसे लोग इतनी आसानी से कन्या भ्रूण हत्याएं करवा लेते हैं। लाखों बेटियां संसार में आने से पहले ही मार दी जाती हैं। ये नहीं सोचते की अगर बेटी ही नहीं होगी तो पुरुष भी नहीं होगा। क्योकि किसी की पत्नी बनकर ही वो बेटे या बेटी को जन्म देती हैं। जन्म के बाद भी कन्याएं आशुरक्षित हैं।
यहाँ तक की कन्या को जन्म देने वाली माँ को भी बहुत कुछ सहना पड़ता हैं। हमारे देश में आम लोगों का कहना हैं की दहेज़ जैसी कुप्रथा के चलते लड़की का जनम दुखदायी मन जाता है। और लड़को को बुढ़ापे का सहारा मन जाता हैं। वंश बढ़ने की छह के चलते पुत्र प्राप्ति को आतुर हमारा समाज शायद जब तक होश में आये तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
बेटा जनने वाली स्त्रियां ही नहीं रहेंगी फिर कौन बढ़ाएगा इनका वंश ????
No comments:
Post a Comment