प्रकृति की शरारत
सावन का महीना
कभी धूप कही छाँव
कभी गर्मी कभी सर्दी
इसी बीच अचानक
घनघोर घटा छा गई
बादल आ कर बरस गया
मेरे तन मन को भिगो गया
यह सब देख सूरज मुस्कराया
बादलों के बीच से सूरज निकल आया
अपनी तपती धूप से
सबको झुलसा गया
सूरज की इस शरारत पर
पवन को दया आयी
उसने अपने मन्द-मन्द झोको से
मेरे मन को आनंदित किया
यह देख मैं दंग रह गई
और देखती रह गई प्रकृति
के इस शरारत को
सावन का महीना
कभी धूप कही छाँव
कभी गर्मी कभी सर्दी
इसी बीच अचानक
घनघोर घटा छा गई
बादल आ कर बरस गया
मेरे तन मन को भिगो गया
यह सब देख सूरज मुस्कराया
बादलों के बीच से सूरज निकल आया
अपनी तपती धूप से
सबको झुलसा गया
सूरज की इस शरारत पर
पवन को दया आयी
उसने अपने मन्द-मन्द झोको से
मेरे मन को आनंदित किया
यह देख मैं दंग रह गई
और देखती रह गई प्रकृति
के इस शरारत को
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